कोरोना का बच्चों की पढ़ाई पर असर
सीखना मानव की जन्मजात क्षमताओं में से है, भाषा इस सीखने को नए आयाम में पहुंचा देती है और यहीं से मनुष्य के सीखने की दक्षता उसे अपने अन्य साथी जानवरों से अलग कर देती है, भाषा के माध्यम से ही मानव ने कल्पनाएं गढ़ी, झूठ गढ़े-इन को मिलाकर अपनी जरूरत को साधते हुए धर्म,राष्ट्र,मुद्रा आदि को गढ़ा। इन सबसे भी बढ़कर मानव अपने ज्ञान को अपने साथी मानव व आगे आने वाले मानव को सजहता से आगे बढ़ाने में सक्षम हुआ, इसी के लिए शिक्षा, शिक्षा के साधन -स्कूल आदि अस्तित्व में आये। पर मनुष्य के संस्थागत ढांचे से सीखने की व्यवस्था ज्यादा पुरानी नहीं है, हजारों सालों की मनुष्य के विकास की यात्रा मनुष्य को एक अलग तरीके से सीखने के लिए तैयार करती है- अवलोकन से, जिज्ञासा से, गलती करकर, अपनी सुविधाअनुसार विषय और समय का चयन करकर आदि इस सूची को परिष्कृत किया जा सकता है पर अब मैं आज के विषय की ओर आप को ले चलता हूँ, संस्थागत तरीको ने इंसान को नए तरीके से सीखने के लिए तैयार किया है उदाहरण के लिए स्कूल -एक ही तरीके से कई तय किए ज्ञान को सिखाने का प्रयास करते हैं, कोरोना काल ने इस प्रक्रिया को मंद करने में बड़ी भूमिका निभाई है, सीखने को मंद करने में नहीं। सीखने के तरीको में बदलाव का वाहक बना है कोरोना काल।
बच्चों को अब सुबह -सुबह डांट -डपट कर उठाने की जरूरत नहीं पड़ी, उन्होने परिवार के सदस्यों के साथ ज्यादा समय बिताया, परिवार को परिवार में रहकर जाना, नहीं तो इसकी परिभाषा को कक्षा में याद करना होता था। घर के लोग बच्चों से संवाद कर पाएँ, अपने जीवन के अनुभव साझा कर पाएँ, जिससे बच्चों के मानस में कुछ तय मानक परिभाषाएँ की जगह एक ठोस व जीवंत जीवट ने ले ली, और कोरोना काल और इसके बाद के काल में यही ज्यादा उपयोगी भी होने वाला है।
बच्चों के संवाद के स्तर में अपेक्षित सुधार हुआ है, मानक शब्द जरूर कम हुये हैं पर स्थानीय शब्दों ने बच्चों के शब्दकोश में जगह बना ली है।
बच्चों की अलग -अलग उम्र के व्यक्तियों के साथ मिलकर रहने की आदत में सुधार हुआ है, स्कूल के समय और उसके बाद ट्यूशन/हौबी क्लासेस्स में वे अपनी आयु वर्ग के साथ ही ज्यादा समय बिताते थे।
बच्चे बड़ो के साथ मिलकर उनके कार्यों को समझ रहें है, अपनी क्षमतानुसार योगदान कर रहे हैं, ने पहले से ज्यादा रचनात्मक व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आयें है, स्कूल की व्यवस्था में उन्हे कुछ हाथ से करने के अवसर सीमित मात्रा में ही दिये थे।
कोरोना काल के चुनौती पूर्ण वातावरण ने उनकी सोचने-समझने की धार को पैना किया है, उन्हे नए फैसले लेने पड़े जैसे -घर पर रहकर कौन -कौन से खेल खेले जा सकते हैं?बिना जंक फूड के जीभ को संतुष्ट कैसे किया जा सकता है?घर में अपनी इमेज को तेज व समझदार व्यक्ति के रूप में कैसे कायम रखा जाये?, क्यूंकी कोरोना काल से पहले परिवार के सभी सदस्य को एक-दूसरे के साथ साझा करने को इतना समय नहीं मिलता था।
सबसे बड़ा फायदा बच्चों के स्वास्थ्य को हुआ है, वे अपने स्वास्थ्य कों लेकर अधिक सजग हो गए है, वे जरूरी नींद ले रहें हैं, खान-पान में भी संतुलन ना चाहते हुए बनाना ही पड़ रहा है, घर के बड़े उन्हे योगा व घरेलू व्यायाम के प्रति प्रेरित करने में भी सफल हुये हैं।
तकनीक का असर भी इस कोरोना काल में बदला है और इसने सीखने को भी अत्यधिक प्रभावित किया है,बच्चे तो बच्चे उनके साथ उनके माता-पिता की भी तकनीकी क्षमताएं तेजी से बढ़ी हैं, जो अभिभावक स्मार्ट फोन को फोन की तरह ही उपयोग में लाते थे वो भी अब उसके स्मार्ट होने को बखूबी जान चुके हैं, ऑन लाइन कक्षाओं में शामिल होना, बच्चों की काम करते हुए फोटो लेना, उनकी विडियो बनाना, बच्चों के सवालों को खोजकर उनका समाधान करना आदि, बच्चे ब बड़े ज़ूम व गूगल मीट जैसे साधनो का उपयोग औपचारिक जैसे स्कूल, ऑफिस आदि के साथ -साथ अनऔपचारिक उपयोग जैसे – बच्चे अपने दोस्तों के साथ और बड़े अपने दोस्तों के साथ कर रहे हैं। ऑन लाइन शॉपिंग में भरोसा बढ़ा है व पैसे भेजने व मँगवाने के लिए भी तकनीक के प्रयोग में बढ़ावा हुआ है। बच्चे भी इन सबके अवलोकन से तकनीक के घरेलू उपयोग को सीख गए हैं अब वे फोन को केवल खेल या मनोरंजन के लिए उपयोग नहीं करते वरन घर के सभी सदस्यों के कार्य को आसान बनाने में करते हैं जैसे माइक्रोसॉफ़्ट लेंस का उपयोग डॉक्युमेंट्स स्कैन करने में, मम्मी को झट से नयी रेसिपी बताने में, व्हाट्स अप्प ज्ञान के बड़ो को चेताने व उसका परिष्कृत वर्जन उन तक पहुंचाने में उनकी भूमिका अहम हो गई है।
कोरोना काल में सीखने-सिखाने के नए आयाम हमारे सामने आयें हैं या कहें की हमने मानव के मूलत: सीखने की प्रक्रिया को फिर से जीकर देखा है जिससे बाजारवादी व्यवस्था के दबाब में आकार स्कूल की व्यवस्था ने किनारा कर लिया था, स्कूल को और इससे जुड़े अन्य सरोकारों को पुन: अवलोकन व आत्म समीक्षा करने की आवयशकता है की वो सीखने को मानव का नैसर्गिक लक्षण ही माने और जो मानव विकास की लंबी यात्रा रही है जो सीखने के बारे में बहुत कुछ बताती है के साथ सीखने को जीवंत व आनंदमय बनाएँ रख सकें।
कोरोनाकाल में तकनीक ने स्कूल की पुरानी व्यवस्था की पोल भी खोल दी है और सचेत भी किया है। स्कूल व्यवस्था को अब फिर से आम समाज का विश्वास पाने की कवायद करनी होगी और अपने अस्तिव को तकनीक के साथ मिलकर फिर से गढ़ना होगा जिसमे सीखना अपने मायने में रहे नहीं तो कोरोना काल ने स्कूल की भूमिका पर सवालियत चिन्ह तो लगा ही दिया है – बच्चे अपने स्वभाव से सीखते हुए आगे बढ़ रहे हैं, उनकी यात्रा का सहयात्री बनने को स्कूल का सदेव स्वागत है वरन नयी व्यवस्था आहट दे चुकी है।
If you want to use the photo it would also be good to check with the artist beforehand in case it is subject to copyright. Best wishes. Aaren Reggis Sela
Way cool! Some very valid points! I appreciate you penning this write-up and the rest of the website is really good. Mei Beniamino Sudhir
Hello. This article was extremely remarkable, particularly because I was searching for thoughts on this issue last Thursday. Meredithe Byron Pride
Ah, merci, Stephen! That adds to my understanding of the phrase. Kikelia Ozzie Hulbard
I think you have observed some very interesting points, regards for the post. Wrennie Jeddy Healey
There is definately a great deal to know about this topic. I really like all of the points you have made. Janetta Kristoforo Tiffie
Good way of describing, and good article to take data about my presentation subject, which i am going to convey in school. Charo Gannie Reamy
A wonderful prayer and one I am turning to as I try to save my marriage. I have no other hope than to give it to God. Corrinne Francis Philis
Way cool! Some very valid points! I appreciate you penning this write-up plus the rest of the site is very good. Birgitta Emmy Tronna
Way cool! Some extremely valid points! I appreciate you writing this post and also the rest of the website is also very good. Korry Abbe Natica
I am really thankful to the holder of this site who has shared this fantastic article at here. Amata Tabb Zorana
I think the admin of this web site is genuinely working hard in favor of his web page, as here every material is quality based data. Frederique Guthry Iphlgenia
Great article! We will be linking to this particularly great content on our site. Keep up the good writing. Constantine Zacherie Glenda
Well said Mark. Love your candor. You are a talented writer. Blessings to you and Jen. Joana Nester Indihar
Dr. Chang thank you for taking the time to respond and for clarifying your position. I found it very helpful. Gabie Ebeneser Cuthbertson
I pay a visit day-to-day a few web pages and sites to read articles, except this weblog gives feature based articles. Dianemarie Garfield Carlynne