मेरी प्यारी किताब
विकास शर्मा
बच्चों को ऐसे खेल या गतिविधि पसंद आते हैं जिनमें उन्हें अपने ज्यादा अंगो का उपयोग करना पड़ता है, वे संचालन कर पाते हैं आस-पास की जगह को उपयोग करते हुये और सबसे महत्वपूर्ण उनके दिमाग को मिलती है खुराक- कुछ नयापन, सोचने को उकसाने वाला, कल्पना के अवसरों की असीम संभावना देने वाला । अब हम बच्चों को पढ़ने की ओर ले जाना चाहते हैं, हम चाहते हैं की बच्चे किताबों के साथ वक़्त बिताएँ, उनसे दोस्ती करें तो हमें बच्चों और किताबों के बीच होने वाली अंत: क्रिया को जीवंत करना होगा जो उन्हें ऐसे तमाम अवसर दे जिनकी इस लेख के शुरुआत में बात हुई है। हमें ऐसे मॉडल बच्चों के सामने रखने होंगे जिसमें बच्चे देख पाएँ बड़ो को किताबों से साथ ख़ुश और जुड़े हुये क्योंकि केवल बच्चों से ये अपेक्षा करना तो बेमानी होगा।
बच्चों और किताब के बीच एक ऐसी ही अंत: क्रिया को यहाँ साझा कर रहा हूँ। बच्ची है काशवी और किताब है पू, पराग ऑनर लिस्ट के द्वारा दी गई किट की किताब है, बच्चों को और बड़ो को भी जानवरों के साथ एक अलग ही किस्म का जुड़ाव होता है, उनके बारें में जानना, उन्हे देखना, उन्हे समझना, उनसे प्यार करना या डरना सभी को एक समान रूप से पसंद आता है-ऐसा हमारे इंसान होने में है। किताब का चयन व विषय वस्तु हमारी प्रक्रिया को सरल बना देते हैं।
किताब को दिखाकर जानवरों पर बातचीत शुरू हुई, बिल्ली, कुत्ता, चूहा जिन्हे वो रोज देख पाती है से शुरू होकर शेर, बकरी, चीता तक पहुंची जो किताबों, कहानियों और टीवी के जरिये या कभी चिड़ियाघर में इक्का -दुक्का बार ही देख पाई थी, पर बात और आगे पहुँचती है और यूनिकॉर्न, डाइनासौर, पेपा पिग, ईना -मीना -डिका तक पहुँचती है जिनसे उसका वास्ता कार्टून देखते हुये या कहानियों में ही हुआ था पर वास्ता अच्छा खासा था ऐसा इसलिए कह रहा हूँ की बातचीत अब पहुंची इन जानवरों की आवाज पर पहुंची, काशवी जब आवाज निकाल रही थी तो साथ में अनायास ही उनके जैसी भाव भंगिमाएँ जैसे शेर की आवाज के साथ आक्रामक हो जाना और साँप की आवाज के साथ लहराना इत्यादि।
इसके बाद बारी आई जानवरों के चाल की, काशवी और मैंने चलीं कछुए की चाल, भालू की चाल, मस्त हाथी की चाल, साँप की चाल जो अपार आनंद देने वाली गतिविधि रही।
इसके बाद मोबाइल में इन सभी जानवरों को 3D में देखा गया इनकी आवाज सुनी गई, उंगली से इन्हे दायें-बाएँ, ऊपर-नीचे,घूमा-घूमा कर देखा गया।
अब बातचीत हुई की ऐसा क्या है जो सब जानवर करते हैं जैसे सोते हैं, थकते हैं, खाते हैं, पू करते हैं, पू पर बात करना हमारा नजरिया इसे थोड़ा मज़ाकिया बना देता है।
अब इस किताब के आवरण को दिखाकर बात हुई की ये किताब है जानवरो के पू के बारें में, एक पूरी किताब पू के बारे में, चित्रों के साथ, कुछ जाने पहचाने और कुछ नए जानवरों के साथ और साथ में बच्चों की टोली जो जैसे जानवरों के पू के बारें में हमारे साथ अपनी प्रतिक्रिया साझा करते हैं। किताब के चित्र जानदार हैं हम जानवरों को महसूस कर पाते हैं और पू को भी …
पू के बारे इतने सवाल, घूम -घूम कर फिर वही सवाल ,पू पर भी इतनी बातें हो सकती हैं!
क्या सब पू करते हैं? माँस खाने वाले गंदी महक वाला, शाक भाजी खाने वाले के पू में गंदी महक क्यूँ नहीं होती,
हम तो टॉइलेट में जाते हैं, जानवर टॉइलेट में क्यूँ नहीं जाते?
पू को खा लेते हैं? पू में ही रहते हैं? पू से कुछ पता भी चलता है? ( शेर अपने क्षेत्र के बारें में पू से इंगित करता है, ये जानने के बाद)
पू की बारिश- इसको कल्पना करना, पू से बना घर को सोचना,
पू हमारे काम भी आता है?
पू से कागज बनता है,
पू से बने आभूषण पहने भी जाते हैं!?
पू,पू …. जो केवल मज़ाकिया या कम बात करने या ना बात करने वाला था, इस किताब ने पू को हमसे एक सिरे से जोड़ दिया।
किताब को पेज दर पेज पढ़ा गया, रूक-रूककर सवाल किए गए, बात की गई, कल्पना की गई, फिर पढ़ना शुरू किया गया, चित्रों पर भी चर्चा की गई।
फिर बिना किताब में लिखे को पढ़े केवल चित्रों की सहायता से किताब को पढ़ा गया।
फिर बिना किताब के किताब को याद से सुनाया गया,सारे काम ये मिलकर किए गए।
फिर काशवी ने इस किताब को दोहराया,और इन सवालों को बार -बार दोहराया गया।
अब ये किताब हमारी बातचीत का हिस्सा बन चुकी है, हम सब पू करते हैं, पू हमारे काम भी आ सकता है, पू से कागज भी बनता है। हम पू क्यूँ करते हैं?
अब हम कोई भी खेल खेलते हैं, कुछ बात कर रहे होते हैं और किताबों के बारें में, अचानक से पू बीच में आ ही जाता है, किताबी पू।
और जानवरों को 3डी में देखना, उनकी आवाजें निकालना, उनकी तरह चलना काशवी और मेरे खेलों में शामिल हो चुका है।
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