गणित और गणित का TLM

                                                    गणित और गणित का TLM

                                                                                                    -विकास शर्मा 

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गणित भयावह है, बच्चे गणित से डरते हैं ,गणित कठिन विषय है आदि वाक्य हमें  गणित के विषय मे सुनने को मिलते हैं । यह दृष्टिकोण जो बड़ो का होता है,बच्चे बिना गणित को जाने इसे मान लेते है,  जबकि वास्तविकता में तो वे गणित के पास गए ही नहीं ।

जाने –अंजाने बच्चे जीवन मे गणित करते रहते हैं, बच्चे खेलते हैं, अपने पर्यावरण से परिचय करते हैं ,खाने –पीने में ,बच्चों के झगड़ने में  आदि आदि बच्चों के हर कार्य में गणित होता है ।

शिक्षकों व बड़ो को समझना होगा की गणित महज एक ऐसी अवधारणा नहीं है जिसको एक पदती के सहारे सीख भर लेना है बल्कि उसके चमत्कार जीवन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक है।

आजकल के परिवेश में तो गणित पर एक अन्य भरी ज़िम्मेदारी भी आ गई है । बच्चों को धीर व शांत बनाए रखने की । नि : संदेह आज के बच्चे हर प्रकार से तेज़ तर्रार हैं लेकिन पिछली पीढ़ी की समान रूप से महत्वपूर्ण बहुत सी क्षमताएं लुप्त भी हो चली हैं । इनमें शामिल है शांत हो धीर हो कोई पुस्तक को पढ़ना या फिर मोटेतौर पर ऐसी किसी गतिविधि में लीन होना जो पूरा होने में समय लेती है और जिनमें मेगी नूडलस  जैसा फटाफट संतोष नहीं मिलता है । आजकल की फटाफट जिंदगी की समस्याओं का हल गणित के पास ही है।

गणित एक बेहतर व्यक्तितत्व गढ़ने का कार्य करता है। तर्क शीलता ,रचनात्मकता ,कल्पना करने की क्षमता के साथ-साथ देनिक जीवन में भी संतुलन बनाता है।

गणित के शिक्षण की तमाम विधियों में जैसे सन्स्लेष्णातमक,विश्लेषणात्मक ,आगमन ,निगमन ,रचनवाद ,RME ,खेल विधि व समस्या समाधान विधि इत्यादि पर दो विधि जो मुझे व्यक्तिगत तौर पर पसंद नहीं है वो हैं –व्यवहारवाद व व्यखायान द्वारा । बिना संकल्पना व अवधारणा के ही ,बिना मूर्त को पहचाने अमूर्त में ले जाना कहीं से तार्किक नहीं लगता । यदपि स्व्यम इन्ही दो विधियों द्वारा मुझे अधिकांश गणित सिखाया गया है ।

गणित की कक्षा के लिए अधिक TLM की आवशयकता भी नहीं होती है । शिक्षक का संवाद व उसका नजरिया व गणित के उद्देश्य को लेकर स्पष्टता का होना सबसे महत्वपूर्ण TLM बनता है । शिक्षक बच्चों को उनकी भाषा में ही रोचक गणित से पहचान करा सकता है।  उन्हे कहानी –किस्सों से, जिनमें ऐसे चरित्र हों जिनके साथ बच्चे अपना जीवंत रिश्ता कायम कर सकें ।

गणित को पढ़ाने का काम बेमन से नहीं किया जा सकता क्योंकि अपर्याप्त समझ की वजह से जो समस्याएँ शुरुवाती वर्षो में ही पैदा हो जाती हैं , उन्हें बाद में शिक्षक को ही भुगतना पड़ता है।

कंकर –पत्थर ,छोटे-छोटे लकड़ी के टुकड़े ,पत्तियाँ ,ताश ,माचिस की तिलियाँ आदि छोटी –छोटी वस्तुएं गणित शिक्षण में सहायक होती हैं । यह ध्यान रखना जरूरी है की गणित शिक्षण में मूर्त वस्तुओं का प्रयोग हम सिर्फ इसलिए करते हैं ,ताकि बच्चे अमूर्त संकलपनाओं और अमूर्त चिंतन पिरर्क्रिया तक पहुँच सकें ।

कक्षा में घड़ी ,केलेण्डर खुद में रुचिकर टीएलएम  है। जो गणित की व्यापक अवधारनाओं को गढ़ने में सहयोग करते हैं । कक्षा का ब्लैक बोर्ड भी एक शशक्त टीएलएम की भूमिका निभाता है। बच्चों की भागीदारी इसमें अति महत्वपूर्ण है । बाज़ार से टीएलएम लाने की अपेक्षा शिक्षक का बच्चों के साथ मिलकर खेल-खेल में उनसे ही टीएलएम तैयार करने में अधिक सार्थकता है। बच्चे चाहतें हैं की उनके विचार दूसरों के द्वारा सुने जायें ।

अन्य टीएलएम में शिक्षण कार्ड जिन्हें विषय तथा सीखी गई अवधारणा के मुताबिक अलग –अलग स्थलों पर जमाया जा सकता है । कार्य –पुस्तिकाओं ,गतिविधियों आयोजित करने के लिए जरूरी सामग्री फ्लैश कार्ड ,गोटियाँ ,गुरिए ,कंकर ,छड़िया,कठपुतलियाँ,परदे, मुखोटे इत्यादि ।

गणित शिक्षण ठहरे हुए पानी का तालाब नहीं है , उसमें तो हमेशा प्रवाह बना रहता है, अपने प्रवाह के साथ वह अनेक विचारों,तकनीकों और नवाचारों को समेटते चलता है।  

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