अगर आप कुछ ना हो तो वैसे ही कोई आपको नहीं पूछता है पर अगर आप कुछ बनने की डगर पर चलना चाहो तो जो ये कुछ नहीं हैं ये आपको इतनी आसानी के कुछ बनने की डगर पर चलने थोड़े ही देते हैं। जो ये कर सकते हैं- ताने, उल-जलूल सवाल , संदेह -ऐसा ही कुछ, वो सब करते हैं। ये सब आपकी रफ्तार पर फर्क तो डालता ही है पर ये आपके कदमों को मजबूत बनाता है, जल्दी से फिसलने नहीं देता। जब हम भी उस भीड़ मलतब कुछ का हिस्सा होते हैं तो ऐसा ही करते हैं पर जैसे ही कुछ से आगे की सोचने की शुरुआत करते हैं हम खुद को उन सबसे अलग देखने लगते हैं।
ये सब दर्शन मुझे तब सुझा जब मुझसे कुछ सवाल पूछे गए थे अभी हालिया में ही हुई कार्यशाला के दौरान। जब हम फुर्सत में होते हैं, चिंताओं से परे होते हैं तभी ये दर्शन हमारे भीतर उमड़ता है, नहीं तो हमें ये दर्शन काम के रास्ते की अड़चन से ज्यादा समझ नहीं आता, वास्तव में ये हमारे काम को गढ़ता है या हमारे काम से खुद को, कौन जाने?
बुनियादी गणित पर मुझे बात रखनी थी। बुनियादी गणित क्या है? क्या -क्या दक्षताएं/कौशल सिखाने होते हैं? और कैसे सिखाने की विधाएँ होंगी? अभी संख्याओं पर बात शुरू ही की थी की एक सज्जन शिक्षक ने अपनी विदत्ता का परिचय देते हुये अपना सवाल रखा- “भाषा में तो वर्ण से शब्द, शब्दों से वाक्य, वाक्यों से अनुछेद और फिर कल्पनाओं और विचारों का सागर शुरू हो जाता है, पर गणित में संख्याओं को एक बार सीख लिया तो सीख लिया, बार -बार इन पर बात करने की कोई आवयशकता नजर नहीं आती है”।
मैंने कुछ -कुछ सहमति दिखाते हुये अपनी बात शुरू की, गणित को देखें तो एक भाषा ही है, विशिष्ट भाषा। विशिष्ट इसलिए की सटीक और तार्किक ढंग से स्पष्टता के साथ बात आगे बढ़ती रहती है, इसे सामान्य भाषा की तरह तोड़ -मरोड़ के अपनी सुविधानुसार उपयोग नहीं किया जाता है, तभी तो गणित को इस यूनिवर्स की भाषा कहा जाता है।
अभी हम संख्याओं पर आते हैं, इन संख्याओं को देखे तो लोगो ने जीवन गुजारा है, इन्हें देखते हुये। कभी उलझ कर रह जाते हैं जैसे शून्य को सम माने या विषम, ये संख्याएँ थीं हमने इन्हे खोजा या हमें जब जरूरत हुई हम इन्हें गढ़ते चले गये। 1 को भाज्य माना जाये या अभाज्य, सब संख्याओं को जोड़ा जाये 1 से अनंत तक तो कैसे माइनस के एक बटे बारह (-1/12) हो गया? कैसे कोई संख्या भाग्यशाली हो जाती है और कैसे कोई अपशुकनी?
कुछ संख्याए तो पारलोकिक कही जाती हैं, मतलब हर संख्या को जोड़,घटाव, गुणा,भाग, वर्गमूल आदि ( बीजगणितीय संक्रियायेँ) के द्वारा व्यक्त की जा सकती है पर ऐसी संख्या भी है जो इस नियम से परे है जैसे e और pi, ये संख्याएँ दशमलव के बाद कभी ना खत्म होने वाली श्रंखला में बढ़ती जाती है।
e = यूलर की संख्या एक महत्वपूर्ण स्थिरांक है जो कई संदर्भों में पाया जाता है और प्राकृतिक लघुगणक का आधार है। अक्षर ई द्वारा प्रदर्शित एक अपरिमेय संख्या, यूलर की संख्या 2.71828 है…, जहां अंक एक ऐसी श्रृंखला में हमेशा के लिए चलते हैं जो कभी समाप्त नहीं होती या दोहराती नहीं है (पाई के समान)।
संख्या π ( जिसे “pi” के रूप में लिखा जाता है) एक गणितीय स्थिरांक है जो एक वृत्त की परिधि का उसके व्यास से अनुपात है, जो लगभग 3.14159 के बराबर है। संख्या π गणित और भौतिकी के कई सूत्रों में दिखाई देती है। यह एक अपरिमेय संख्या है, जिसका अर्थ है कि इसे दो पूर्णांकों के अनुपात के रूप में सटीक रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है, नतीजतन, इसका दशमलव प्रतिनिधित्व कभी समाप्त नहीं होता है, न ही स्थायी रूप से दोहराए जाने वाले पैटर्न में प्रवेश करता है।
बुनियादी कक्षाओं में कैसे इस तरह की चर्चा की जा सकती है की बच्चे सख्याओं में पैटर्न खोजें, नयें नियम बनाएँ और सीखने या कुछ नया खोजने को परमानंद है उसे महसूस करें।
कोई भी 4 अंकों की संख्या लीजिये, किसी भी अंक की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। जैसे 8597,अब इन अंको से बनने वाली सबसे छोटी और बड़ी संख्या बनाएँ –
छोटी संख्या – 5789
बड़ी संख्या – 9875
अब बड़ी संख्या में से छोटी संख्या को घटाएँ –
9875-5789 = 4086
फिर से यही प्रक्रिया दोहराएँ,
छोटी संख्या – 0468
बड़ी संख्या – 8640
अंतर = 8172 ,
फिर से यही प्रक्रिया दोहराएँ,
छोटी संख्या – 1278
बड़ी संख्या – 8721
अंतर= 7443
फिर से यही प्रक्रिया दोहराएँ,
छोटी संख्या – 3447
बड़ी संख्या – 7443
अंतर= 3996
फिर से यही प्रक्रिया दोहराएँ,
छोटी संख्या – 3699
बड़ी संख्या – 9963
अंतर= 6264
फिर से यही प्रक्रिया दोहराएँ,
छोटी संख्या – 2466
बड़ी संख्या – 6642
अंतर= 4176
बस एक बार और, 7 बार से ज्यादा नहीं करने की जरूरत पड़ती,
फिर से यही प्रक्रिया दोहराएँ,
छोटी संख्या – 1467
बड़ी संख्या – 7641
अंतर= 6147
अब इस प्रक्रिया को कितनी और बार दोहराएँ, यहीं रुके रहेंगे
देख लीजिये फिर से दोहराकर, कोई भी और चार अंकों की संख्या लेकर देख सकते हैं हमेशा अधिकतम 7 बार में 6147 पर ही जाकर रुकेंगे।
भारतीय गणितज्ञ डी. आर. कापरेकर के नाम पर 6174 को कापरेकर के स्थिरांक के रूप में जाना जाता है।
तीन अंको की संख्या के लिए भी है, यहाँ पर संख्याएँ 495 पर जाकर रुकेंगी। कोई भी तीन अंको की संख्या लेकर करके देखिये, नियम वही हैं, अंक रिपीट नहीं करना है ,इन अंको से बनने वाली बड़ी संख्या से छोटी को घटाना है, देखिये की अधिकतम 7 बार का नियम यहाँ भी काम करता है या नहीं।
ऐसे ही कई मजेदार संख्या है जो अलग ही अंदाज रखती है जैसे 16, जिसे 2 की घात 4 और 4 घात की 2 के रूप में लिखा जा सकता है, और कोई ऐसी संख्या हो तो बताओ जिसमें इस तरह से किया जा सकता हो।
अच्छा एक और, कोई भी 3 अंकीय संख्या लीजिए जिसके पहले और अंतिम अंक में 2 या अधिक का अंतर हो।
अब संख्या को उलट दें, और दो संख्याओं में से बड़ी संख्या को घटा दें ।
फिर परिणाम को उल्टा करें और जोड़ें ।
मैं बता देती हूँ की आपके पास क्या संख्या आई ,
1089
आपने संख्या सोची थी , 287
अंको को उलटने पर , 782
घटाने पर 495
परिणाम को उलट कर जोड़ने पर
495+594=1089
जादुई संख्या कहलाती है 1089
इसका पहाड़ा लिखकर दिखाती पल भर में,
कॉलम में देखना है कैसे अंक बढ़- घट रहें हैं –
1 × 1089 = 1089
2 × 1089 = 2178
3 × 1089 = 3267
4 × 1089 = 4356
5 × 1089 = 5445
6 × 1089 = 6534
7 × 1089 = 7623
8 × 1089 = 8712
9 × 1089 = 9801
और एक पैटर्न भी देखिये –
1 × 1089 = 1089 ↔ 9 × 1089 = 9801
2 × 1089 = 2178 ↔ 8 × 1089 = 8712
3 × 1089 = 3267 ↔ 7 × 1089 = 7623
4 × 1089 = 4356 ↔ 6 × 1089 = 6534
5 × 1089 = 5445 ↔ 5 × 1089 = 5445
और भी हैं, आप भी ढूँढना , मैं भी , बच्चे भी बड़े आनंद से गणित को गढ़ते हैं, कहा भी गया है की जब बच्चे गणित सीख रहे होते हैं तो जैसे इंसान ने संख्याओं तक पहुँचने और इनके साथ यात्रा की है, बच्चे भी ठीक वैसे ही गणित को रचते हैं, शर्त यही है की उन्हें ऐसे अवसर दिये जाएँ।