भाग 1 : भाग की अवधारणा
एक सरल से सवाल से शुरुआत करते हैं कि भाग कि अवधारणा क्या है?
एक जबाब – जब किसी वस्तुओं समूह को कुछ व्यक्तियों के बीच बराबर बांटा जाता है, तो प्रत्येक को मिलने वाली वस्तु भागफल होती है।
जैसे यदि 6 भाग 2 = 3 लिखा है तो इसका मतलब है कि 6 वस्तुओं को 2 व्यक्तियों में बराबर बाँटा जाये तो प्रत्येक को 3 – 3 मिलेगा।
पर इतना ही भर केवल भाग नहीं है।
जोड़ व घटाव के संदर्भों पर बात करना अपेक्षाकृत सरल होता है। आप पाएंगे की कक्षा -कक्ष में जितनी सहायक सामग्री और संदर्भों से जोड़ और घटाव पर काम होता है, गुणा में और कम और भाग तक पहुँचते -पहुँचते तो न्यूनतम हो जाता है। इसके कारण तलाशने पर जो मेरे जेहन में आते हैं कि –
अमूमन दैनिक जीवन में हम भाग को छोटी संख्याओं के साथ ही उपयोग में लाते हैं। बच्चों को मानक विधि सिखाने कि इतनी जल्दबाज़ी रहती है कि अवधारणा व वैकल्पिक विधियों को जरा भी जगह नहीं मिलती हैं। आप भी जरा सोचकर देखिये कि जोड़ -घटाव -गुणा के तो कई संदर्भ व वैकल्पिक विधियाँ बता दोगे पर जब भाग कि बारी आएगी तो वही लॉन्ग डिविजन विधि। इस पर भी सोचा जा सकता है कि भाग कि एल्गॉरिथ्म को हम दायें से शुरू करते हैं जबकि जोड़-घटाव-गुणा कि एल्गॉरिथ्म को हम बाएँ से शुरू करते हैं और इस पर पर्याप्त बातचीत भी नहीं होती है कि ऐसा क्यूँ किया जा रहा है? आप ये भी देखेंगे कि भाग क्रम विनिमय के नियम को भी अनुपालन नहीं करती मतलब 3+6 और 6+3 और 3 गुणा 6 और 6 गुणा 3 का परिणाम एक ही रहता है पर 6 भाग 3 और 3 भाग 6 एक नहीं होते हैं।
एक पहलू गणित कि सोपान क्रमिकता व संचयी प्रकृति है । गणित कि अवधानाएं उत्तरोत्तर एक पर एक बढ़ती चली जाती हैं और बीच कि कड़ी टूटने का मतलब दिमाग को बेवजह उलझन में डालना होगा।
गणित के बारे में जो नियम हम अमूमन बनाते हैं (आगमन आधारित) वो एक दायरे में ही काम करते हैं क्योंकि गणित के नियम निगमनात्मक प्रकृति के होते हैं मतलब गणित कि संरचना सुसंगत तर्को पर होती है। यहाँ हम भाग कि बात कर रहे है तो इसी से जुड़े उदाहरण लेंगे।
A – भाग का क्या मतलब है?
B – जब हम कुछ वस्तुओं को किन्ही लोगों में बराबर बांटेगे तो एक जो मिलेगा जबाब होगा। जैसे 8 लड्डू को 4 बच्चों में बराबर बांटने पर एक को दो लड्डू मिलेंगे।
8÷4 = 2
A – मतलब भाग में मात्रा छोटी होती चली जाती है ।
B – हाँ
A अच्छा, तो ये बताओ कि आधे का आधा कितना होगा? मतलब ½ ÷ ½ बराबर क्या?
B – 1
A – 1 कैसे आ गया? ये तो ½ से ज्यादा है, अभी तो तुम कह रहे थे कि भाग करने पर छोटी मात्रा मिलती है।
इस उदाहरण में आप देखेंगे कि जब हमने ये नियम बनाया कि भाग करने में छोटी मात्रा मिलती है तो अभी कुछ उदाहरण देखें और एक अपना नियम बना लिया जैसे –
100 ÷20 = 5 , 40 ÷5 = 8
पर गणित में ऐसे नियम नहीं बनते, कुछ उदाहरण देखकर हम नहीं कह सकते कि सभी संख्याओं के साथ भी ऐसा ही होगा क्योंकि गणित में कोई एक प्रति उदाहरण आते ही पुरानी सारी इमारत ढह जाती है, जैसा अभी ऊपर दिये उदाहरण में हुआ। गणित में हमें n के लिए सामान्यीकरण करना होता है इस पर अलग से चर्चा कि आवयशकता है, अभी कि चर्चा को भाग पर ही फोकस करते हैं।
यहाँ पर ये ध्यान देने कि बात है कि भाग करने पर छोटी संख्या मिलती है केवल प्राकृतिक संख्याओं में। भिन्न संख्याएँ अलग व्यवहार दिखाती है और ये भी समझने कि जरूरत है कि भिन्न कि भाग में जो जबाब आता है उसका मतलब क्या होता है? यहाँ वो परिमाणात्मक संख्या न होकर कितनी बार है इसको इंगित करती है, उदाहरण के लिए दिये गए आधे में चौथाई कितनी बार है या ½ ÷1/4, इसका जबाब है 2 और इसका मतलब है जिस पूर्ण का आधा किया गया है, उसी का चौथाई भाग आधे में दो बार है।
वापस उसी उदाहरण को आगे बढ़ाते हैं।
A – भाग का क्या मतलब होता है?
B – मेरे पास 36 टाफ़ियाँ हैं, इन्हें 4 बच्चों में बराबर -बराबर बांटना चाहता हूँ, तो हर को कितना मिलेगा?
36÷4 =?
A – अच्छा, तो ये बताओ कि मेरे पास 36 टाफ़ियाँ हैं, और और मुझे 4 -4 कि ढेरी बनानी है तो कितनी ढेरी बनेंगी?
36 ÷4 =?
अब बोलो ये तो तुम्हारे उदाहरण से अलग है, सही कौन है?
इन दोनों A और B कि बात को समझते हैं-
उदाहरण के लिए,
6 ÷2
और इसे दो तरीकों से बनाया जा सकता है:
“6 की राशि प्राप्त करने के लिए 2 के आकार के कितने भागों को जोड़ा जाना चाहिए?” (उद्धरण भाग)
कोई लिख सकता है
चूँकि इसमें 3 भाग लगते हैं, निष्कर्ष यह है कि
और दूसरा,
“2 बराबर भागों का आकार क्या है जिनका योग 6 के बराबर है?”। (विभाजन भाग)
कोई लिख सकता है
चूँकि प्रत्येक भाग का आकार 3 है, निष्कर्ष यह है कि
यह प्रारंभिक सैद्धांतिक गणित का एक तथ्य है कि संख्यात्मक उत्तर हमेशा समान होता है, चाहे आप इसे किसी भी तरह से कहें, 6 ÷ 2 = 3
मतलब भाग के दो संदर्भ हो सकते हैं (अभी तक कि चर्चा के हिसाब से )
समूहीकरण – जब हम यह पता करना चाहें कि किसी निर्धारित राशि में से एक निर्धारित परिमाण के कितने हिस्से प्राप्त हो सकेंगे। इस तरीके को बार -बार घटाव से भी दिखाया जाता है जैसे 6÷2 को हल करने के लिए
6 – 2 = 4
4-2 = 2
2-2 = 0
हमें कितनी बार घटाने पर शून्य प्राप्त हुआ ? या 6 की राशि प्राप्त करने के लिए 2 के आकार के कितने भागों को जोड़ा जाना चाहिए?”
या 6 की राशि में दो कितनी बार है, बार -बार 2 घटाव करते हुये कितनी बार में 6 की राशि शुन्य हो जाएगी।
और बराबर बाँटना – जब हम यह पता करना चाहें कि किसी निर्धारित राशि के कुछ बराबर -बराबर हिस्से करने हों , तो हर हिस्से में कितनी मात्रा आएगी।
छोटे बच्चों का वास्ता (दस वर्ष तक) इन्ही दो भाग के संदर्भों से होता है। इसके आगे के संदर्भ छोटे बच्चों के लिए समझना थोड़ा जटिल होगा, क्योंकि कई और अवधारणा जुड़ती चली जाती हैं।
जैसे अनुपात के रूप में, जब हम दो राशियों कि तुलना उनके अनुपात के आधार पर करना चाहें। उदाहरण के लिए रानी का वजन 40 कि. ग्रा. है और प्रीति का वजन 50 कि. ग्रा. है। उनके वजन का अनुपात निकालिए।
बच्चों को भाग की अवधारणा सिखाने से पहले भरपूर उदाहरण दैनिक जीवन के संदर्भों से जुड़े हुये पर काम होना चाहिये-
- भाग एक बराबर बँटवारे के संदर्भ में
- भाग बार -बार घटाव के संदर्भ में
भाग के अनुपात के संदर्भ पर 6 से 8 की कक्षाओं में काम किया जाना चाहिये।
तीनों संदर्भ पर एक साथ उदाहरण आपको अब तक की की गई चर्चा को समेकित करने में मदद करेंगे –
1.काशवी के पास 12 मिठाइयाँ हैं और तीन डिब्बे हैं | समीना तीनों डिब्बों में बराबर-बराबर मिठाइयाँ रखना चाहती है| एक डिब्बे में कितने मिठाइयाँ आएंगी ?
2. आशवी के पास 12 मिठाइयाँ हैं| वह अपने प्रत्तेक दोस्त को 3 मिठाईयाँ देना चाहती है| तो वह कितने दोस्तों में ये मिठाइयाँ बांट पायेगी?
3.काशवी के पास 12 मिठाइयाँ हैं और आशवी के पास 3 मिठाइयाँ है| काशवी की मिठाइयाँ आशवी की मिठाइयों से कितना गुणा ज्यादा हैं?
भाग सिखाने के अगले चरण में भाग और गुणा के संबंध पर काम किया जाना चाहिये। क्योंकि गुणा की अवधारणा पर उनके साथ काम शुरू हो चुका है, तो ये स्वाभाभिक है की भाग की समस्या समाधान के लिए पहाड़ो/गुणन तथ्यों का उपयोग करें। उदाहरण के लिए 12 ÷4 को कोई बच्चा इस तरह समझ सकता है “4 कितनी बार 12 हो जाएगा”?
इसके बाद बच्चों की समझ इस पर बनानी चाहिये कि एक भाग का तथ्य एक और भाग के तथ्य से जुड़ा होता है उदाहरण के लिए 12 ÷ 4 = 3
इसी को जब ठोस वस्तुओं से दिखाया जाएगा तो एक 12 ÷ 3 = 4 से संबंध पर भी साथ ही समझ बन जायगी।
बच्चों के दैनिक जीवन के अनुभवों पर जब ठोस वस्तुओं के साथ काफी काम हो जाये तो चित्रों/दृश्यों के साथ भी लंबे समय तक काम किया जाना चाहिये।
इसके बाद एकल चरण वाले साधारण संदर्भ जिन्हे ठोस, चित्रों और प्रतीकों कि सहायता से हल कर सकें पर पर्याप्त समय देना चाहिये। बच्चे यहाँ तक आते -आते तुरंत मानसिक प्रक्रियाओं या सहायक सामग्री कि सहायता से जबाब देना शुरू कर देते हैं। इस चरण कि महत्वपूर्ण बात ये है कि यहाँ से वो अपने जबाब को, अपनी प्रक्रिया को दर्ज करना सीखें, दर्ज करना सिखाते समय इकाई व दहाई के शीर्षक बनाकर लिखवाने कि आदत डालने से गलतियों कि संभावना भी कम होती जाती है। बच्चे समस्या सुनकर या पढ़कर ये तय कर पाएँ कि केंद्र में कौन सी संख्या लिखी जाएगी, बाईं ओर कौन सी लिखी जाएगी और जो जबाब होगा उसे ऊपर लिखा जाएगा। इस स्तर पर ऐसे संदर्भ लेने से बचें जहां शेष बचे।
इसके बाद शुन्य से भाग, दस से भाग, दो अंको कि संख्या में भाग को कई वैकल्पिक तरीकों से करना व दर्ज करना पर काम करना होगा, भाग कि मानक विधि पर कैसे काम करें? और क्या वैकल्पिक विधियाँ भाग सिखाने कि हो सकती है -इन पर अगले अंक में बात कि जाएगी।
तब तक आप इस बात का अवलोकन कर सकते हैं कि आपके प्रदेश कि पाठ्य पुस्तक और एनसीईआरटी कि पाठ्य पुस्तकों में कैसे भाग कि समझ को चरण बद्ध तरीके से रखा गया है।
(संदर्भ – विभिन्न पाठ्य पुस्तकों, लेखों, e -सामग्री का उपयोग इस लेख को लिखने के लिए किया गया है)
लेखक – विकास शर्मा, वर्तमान में विक्रमशीला एडुकेशन रेसोर्स सोसाइटी से जुड़कर उत्तर प्रदेश राज्य के लिए गणित में काम कर रहे हैं।
और जानने के लिए उनसे निम्न माध्यमों से संपर्क किया जा सकता है – 9660333398, vikasbsw@gmail.com , https://vikassharmaeducation.com, vikassharmaeducation FB page, https://www.youtube.com/c/vikassharmaeducation/videos