गांधी और शिक्षा

                        गांधी और शिक्षा

“ एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रो के साथ घनिष्ठता स्थापित करता है, उनके साथ घुलमिल जाता है ,उन्हे सिखाने से अधिक उनसे सीखता है । जो अपने छात्रो से कुछ नहीं सीखता ,वह मेरी राय में बेकार है । जब भी मैं किसी से बातचीत करता हूँ तो उससे कुछ न कुछ सीखता हूँ। मैं उसे जितना देता हूँ उससे कहीं ज्यादा उससे ले लेता हूँ। इस प्रकार एक सच्चा शिक्षक खुद को अपने छात्रो का छात्र मानता है । अगर आप अपने छात्रो को इस दृष्टिकोण से पढ़ाएंगे तो आपको उनसे बहुत लाभ होगा।“

                                                        गांधी जी

गांधी जी की शिक्षा उनकी आदर्श समाज की धारणा को वास्तविक धरातल पर लाने योजना थी । ऐसा आदर्श समाज जो आज हमारी डिबटेस में ,हमारे आलेखों में और हमारी चर्चाओ तक सीमित रह गया है । ऐसा आदर्श समाज जिसमें छोटे आत्मनिर्भर समुदाय हो और उनमें रहने वाले आदर्श नागरिक सहकारी समुदाय में रहने वाले मेहनती ,स्वाभिमानी और उदार व्यक्ति हों।

शिक्षा को समाज ने केवल अकादेमिक योग्यता विकसित करने के रूप में देखना शुरू कर दिया और शारीरिक कार्य को मानसिक कार्य से कमतर समझना । बच्चा अच्छा डांस नहीं कर सकता ,अच्छा खेल नहीं सकता , अच्छा गा नहीं सकता –अभिभावकों के लिए कोई विशेष चिंता का विषय नहीं होता पर अकादेमिक विषय में न करना बड़ी समस्या की बात हो जाती है । गांधी जी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के किसी एक पहलू पर ध्यान केन्द्रित न करते हुए समग्र व्यक्ति को शिक्षित करना था ।

गांधी जी की ‘बुनियादी शिक्षा’ का सामाजिक दर्शन और पाठ्यक्रम समाज के निम्नतम स्तर वाले बच्चे की इस प्रकार सहायता करना चाहता था की उससे सामाजिक परिवर्तन आ सके । यह ‘शिक्षा’ के प्रतिकात्मकता अर्थ और शिक्षा के अवसरो की पूर्व स्थापित संरचना में परिवर्तन करना चाहता था।

छात्र और शिक्षक की आत्म-निर्देशिता इस शिक्षा की प्राथमिकता है , गांधी जी शिक्षक को बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त करना चाहते थे विशेष रूप से सरकारी या राज्य की दफ्तरशाही से । शिक्षक किस तरह सिखाये ,छात्र क्या सीखे  जब तक स्कूल से एक अलग तंत्र इसको निर्धारित करेगा तब तक शिक्षा अपने अर्थ  को पाने की कोरी कल्पना में दम तोड़ती रहेगी व पाठ्य पूस्तकों की अनिवार्यता शिक्षक को  जीवंत संसार से दूर ले जाएगी और उसमें मौलिकता तो कभी आ ही न पाएगी ।

गांधी जी की ‘बुनियादी’ शिक्षा पाठ्य पूस्तकों और पाठ्यक्रम पर शिक्षको की निर्भरता को खत्म करने की बात करती है , अधिगम की एक ऐसी अवधारणा प्रस्तुत करती है जो पूरी तरह से पाठ्य पुस्तकों से नहीं आती । इसमे पाठ्यक्रम के बारे में शिक्षक को बराबर की स्वतन्त्रता दी गई थी । इसमे शिक्षक क्या पढ़ाये और कक्षा में क्या करे –इस बात का अधिकार किसी बाह्य तंत्र को नहीं दिया गया ।

आज हमारे द्वारा विभिन्न प्रयोगो (शिक्षा में ) के कर लेने के उपरांत हम खुद को गांधी जी की शिक्षा पर समझ के समीप पाते है । शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के किसी एक पहलू पर ध्यान केन्द्रित न करते हुए समग्र व्यक्ति को शिक्षित करना है ।

        गांधी ………एक श्रद्धांजली

नमन –नमन कोटी – कोटी नमन –नमन

उस महानायक को ,जननायक

महानमन

मनन – मनन कोटी – कोटी मनन मनन

 उस महानायक को , जननायक को

महामनन

साधारण सा जन्मा वो , साधारण सा बढ़ा हुआ ,

उस महामानव का मानव सा ही जन्म हुआ ,

साधारण सा पढ़ा – लिखा वो ,साधारण सा कार्यरत हुआ ,

अपने इस सादेपन से ही ,वो असाधारण हुआ ,

नमन – नमन  कोटी –कोटी  नमन –नमन

उस महानायक को जननायक को

महानमन ।

सत्य ही उसका ईश्वर था ,सत्य ही उसका कर्म बना

सत्य की तो राह चलकर , वो मानव महामानव बना

प्रेम ,अहिंसा का उसने ऐसा दीप प्रज्वल्वित किया

नभ सूरज दीप बना , उस दीप ने सूरज सा रूप लिया

मनन – मनन  कोटी – कोटी मनन – मनन

उस महानायक को , जननायक को

महामनन। (Poem by Vikas Sharma) (Text from perspective of education ,APF)

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